Thursday, September 27, 2018

नवाज का 'ठाकरे' होना

फ़िल्म 'ठाकरे' का टीजर रिलीज होते ही एक नई बहस उठ खड़ी हुई है. तथाकथित सेक्युलर जमात के कुछ लोगो का मानना है की जो नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी पिछले वर्ष रामलीला में प्रतिबंधित किये जाने पर असहिष्णु समाज के प्रति पीड़ा प्रकट कर रहे थे.. एक साल बाद वही नवाज़ शिवसेना के ही प्रमुख बाल ठाकरे को अपने ट्वीट और अभिनय के ज़रिए महिमामंडित कर रहे हैं।वे कहते है कि इसके पीछे या तो नवाज़ का डर है या फिल्मी कॅरियर को बुलंदियों पर ले जाने जैसे निहित स्वार्थ!
पर मैं इसे उन पक्षो से हटकर देखने की कोशिश करता हूँ कि क्यों न नवाज़ के हालिया ट्वीट्स को कटाक्ष और 'ठाकरे' में किये गए अभिनय को एक संदेश के रूप में देखा जाए।

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घबराइए मत, ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जिस बालासाहब ने आजीवन 'मराठी मानुष' की आड़ में बिहार-यूपी के माइग्रेंट्स और मुसलमान को लेकर बर्बर और कड़क रहे.. उसी यूपी के लाल और एक मुसलमान नवाज़ ने फ़िल्म में उनके लिए अभिनय करने संकोच तक नही किया।
इसे नफरत के बदले प्यार जैसे शीर्षक में समेटना चाहिए.. जिसके लिए यह भारत की भूमि विश्व भर में प्रसिद्ध रही है।
बकौल मेरे,नवाज़ ने शिव सैनिकों को आईना दिखाया है जो आये दिन महाराष्ट्र में बिहार-यूपी और मुसलमान के नाम पर अपनी राजनीति चमकाते हैं।
निश्चित तो नही कह सकता पर शायद नवाज़ मन ही मन बालासाहब को कहते हो कि आप हम जैसों से नफरत करो फिर भी हम अपने कृतित्व के साथ साथ ट्वीट्स के माध्यम से भी आपको प्यार और सम्मान देंगे ।ये सम्मान और प्यार इसलिए भी महत्वपुर्ण हो जाता है क्योंकि नवाज़ मुस्लिम धर्म से संबंध रखते है जो अक्सर कट्टर होने का दंश झेलता है।
बहरहाल,ये चिर-स्थायी सत्य भी है कि जब राजनीति समरसता नही ला पाती तब कला और साहित्य को आगे आना होता है और फिलहाल 'ठाकरे' में नवाज़ के अभिनय को इसी कड़ी की कोशिश के तौर पर देखना चाहिए... बाकि फ़िल्म का इंतज़ार करे।
हिमांशु रंजन कंठ
छात्र, का०हि०विवि० (बनारस)

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