यह एक स्वाभाविक बात है कि लोग हमें अपने मानकों पर खरा उतरता देखना चाहते हों और यह भी निहायत संभव है कि आप उन सभी के तय मानकों पर खरा न उतर पाएं।
यह दुनिया और यहां के लोग हमेशा आपको अपने चश्मे से देखेंगे और हर चश्में की शक्ति अलग-अलग होगी। कोई आपको अंदर तक झांक लेगा तो कोई आपके बाहरी आवरण को देखकर ही अपनी राय कायम करेगा या कोई आपके ज्ञान व हाव-भाव को देखकर।
अक्सर आपको आपकी बुराइयां बताने या करने वाले ढेरों मिलेंगे। ऐसा बस इसलिए है कि आप उनके मानक पर खरे नही उतर पर रहे या जैसा वे चाहते हैं, आप वैसा नहीं पा रहे है। वस्तुतः सारी प्रशंसा व निंदा भिन्न-भिन्न मानकों की परिणति है।
ये तो निश्चित है कि सबों के मानकों पर खरा उतरना बेहद मुश्किल है इसलिए हमें अपने मानक खुद तय करने होंगे और उसपर खरे उतरने कोशिश करनी होगी।
यह दुनिया और यहां के लोग हमेशा आपको अपने चश्मे से देखेंगे और हर चश्में की शक्ति अलग-अलग होगी। कोई आपको अंदर तक झांक लेगा तो कोई आपके बाहरी आवरण को देखकर ही अपनी राय कायम करेगा या कोई आपके ज्ञान व हाव-भाव को देखकर।
अक्सर आपको आपकी बुराइयां बताने या करने वाले ढेरों मिलेंगे। ऐसा बस इसलिए है कि आप उनके मानक पर खरे नही उतर पर रहे या जैसा वे चाहते हैं, आप वैसा नहीं पा रहे है। वस्तुतः सारी प्रशंसा व निंदा भिन्न-भिन्न मानकों की परिणति है।
ये तो निश्चित है कि सबों के मानकों पर खरा उतरना बेहद मुश्किल है इसलिए हमें अपने मानक खुद तय करने होंगे और उसपर खरे उतरने कोशिश करनी होगी।
किन्तु, यह मानक कैसा हो,क्यों हो? इस बिंदु पर निश्चित ही हमें तार्किक और बौद्धिक रूप से विचार करना होगा। इस कड़ी में यह जरूरी है कि हम अपने बौद्धिक दायरे का सुनियोजित ढंग से विस्तार करें। हमे परंपरागत सोच से परे नवचेतना की ओर मुखातिब होना होगा पर साथ ही हमे अतीत की मान्यताओं पर भी विचार-विमर्श ताकि हम अतीत के अच्छे पन्नों के साथ वर्तमान से कदमताल कर सकें।
याद रहे,हमारा मानक जितना बेहतरीन होगा उतना हमारा व्यक्तित्व भी,कृतित्व भी।
(नवीं कक्षा के समय का लेख)